गद्य पद्य संगम

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सोमवार, 30 मार्च 2015

मुस्कान स्मित (हाइकु)


(१)
आँखों में आशु,
हृदय पिघलना,
कष्टकारक,
(२)
मुस्कुराहट,
बचपन के साथ,
जीवन शैली।


(३)
नव अंकुर,
अंकुरित होते हैं
मुस्काते हुअे।


(४)
बचपन के
मुस्कान जीवन की,
प्रवाहमयी,

रविवार, 29 मार्च 2015

कल्याण करें (कविता)

आओ मिलकर सम्मान करें।
मात्रृभुमि कल्याण करें।
वृक्षों को ना काटे हम।
फूलों को ना तोड़े हम।
दूषित,पानी को ना करें हम।
बर्बाद,पानी को ना करें हम।
आओ मिलकर सम्मान करें।


जल है अमूल्य खजाना।
हम सभी को इसे है बचाना।
यह जानकारी दे हम सबको।
आओ मिलकर सम्मान करें।
एक वृक्ष बराबर एक सन्तान है हम।
ये नारा जग जग में  फैलाए हम।
आने वाले लोगों के  लिए,
ये चिजें बचाये हम।
आओ मिलकर सम्मान करें।


सोचों कल ये खत्म हो जाएगा।
इन्सान इन्सान का भक्षक हो जायेगा।
इस खतरा को उदय ना होने दे,
इसलिए कहता हूँ मैं ,
मात्रभुमि  कल्याण करें
आओ मिलकर सम्मान करें।


~~~~~~~~~रमेश कुमार सिंह ♌

रविवार, 22 मार्च 2015

निम्न स्तर••


लोग आये दिन हर जगह हर विभाग में चारों तरफ चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी यह निम्न स्तर शब्द आता है आखिर यह निम्न स्तर शब्द क्या है? इसे हमें जानने की आवश्यकता है चूंकि हमारे यहाँ बहुत ही ज्यादा लोग निम्न स्तर के होते हैं और निम्न स्तर के लोग एवं कर्मचारीयो को देख रहे हैं किसी भी जगह निम्न स्तर के लोगों को जीवन भर निम्न स्तर बने रहना है। निम्न स्तर के लिए आवास व्यवस्था तो कैसी ? निम्न स्तर के ये लोग यह माँग करें कि हमारे निम्न स्तर बच्चों के लिए निम्न स्तर की बाल संरक्षण की जाय। सबसे पहले आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ।कि इनके अन्दर निम्न स्तर की वृत्ति एक संक्रामक रोग की तरह है।जिसके कीटाणु ------जर्म्स नस-नस में फैल जाते ,जिससे आदमी की महत्वाकांक्षा मर जाती है। कार्यशक्ति जबाब दे जाती है,किसी भी चीज़ को लेकर न कह सकने का साहस उसमें नहीं रह जाता।वह केवल दूसरों का मुह ताकने हाँ -हाँ करने की एक मशीन में तब्दील हो जाता है जिसका सारा ध्यान निम्न स्तर की कुछ आवश्यकताओं को छोड़कर और किसी चीज़ पर नहीं टीक पाता परिणाम होता है कुछ निम्न स्तर की मांगे कुछ निम्न स्तर के प्रस्ताव भी पारित किये जाते हैं। यह निम्न स्तर की वृत्ति इनके अन्दर इस तरह घर कर गई है कि इनकी जीवन सम्बन्धी धारणा निम्न स्तर की होकर रह गई है।ये हँसते हैं तो वह हँसीं निम्न स्तर की होती है प्रेम करते हैं तो वह प्रेम निम्न स्तर की होती है। केवल इतना ही कहना है इस निम्न स्तर की वृत्ति से छुटकारा पाने के लिये हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि आज से हम कहीं भी किसी भी रूप में अपने साथ इस शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। इसलिए कोई दूसरा नाम बदल कर कुछ और रखे तो अच्छा होगा।

शनिवार, 14 मार्च 2015

मुक्तक

यादों के झरोखों में मिलकर तैरते रहेंगे,
यादों रूपी दरिया में डुबे तो खो जायेंगे,।
मिलने की कोशिश करते रहना नहीं तो,
एक दूजे को सदा के लिये  भूल जायेंगे।

अगर सभी कोशिश हमेशा करते रहेंगे।
एकदिन जरूर आपस में मिल जायेंगे।
उसके बाद खुशियाँ एक दूजे में बाटेंगे,
फिर हमेशा की तरह बात करने लगेंगे।
 

निम्न स्तर

हम लोग आये दिन हर जगह हर विभाग में चारों तरफ चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी यह निम्न स्तर शब्द आता है आखिर यह निम्न स्तर शब्द क्या है? इसे हमें जानने की आवश्यकता है चूंकि हमारे यहाँ बहुत ही ज्यादा लोग निम्न स्तर के होते हैं और निम्न स्तर के लोग एवं कर्मचारीयो को देख रहे हैं  किसी भी जगह निम्न स्तर के लोगों को जीवन भर निम्न स्तर बने रहना है। निम्न स्तर के लिए आवास व्यवस्था तो कैसी ? निम्न स्तर के ये लोग यह माँग करें कि हमारे निम्न स्तर बच्चों के लिए निम्न स्तर की बाल संरक्षण की जाय।
                 सबसे पहले आपका ध्यान  इस ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ।कि इनके अन्दर निम्न स्तर की वृत्ति एक संक्रामक रोग की तरह है।जिसके कीटाणु ------जर्म्स नस-नस में फैल जाते ,जिससे आदमी की महत्वाकांक्षा मर जाती है।
                 कार्यशक्ति जबाब दे जाती है,किसी भी चीज़ को लेकर न कह सकने का साहस उसमें नहीं रह जाता।वह केवल दूसरों का मुह ताकने हाँ -हाँ करने की एक मशीन में तब्दील हो जाता है जिसका सारा ध्यान निम्न स्तर की कुछ आवश्यकताओं को छोड़कर और किसी चीज़ पर नहीं टीक पाता परिणाम होता है कुछ निम्न स्तर की मांगे कुछ निम्न स्तर के प्रस्ताव भी पारित किये जाते हैं।
                  यह निम्न स्तर की वृत्ति इनके अन्दर इस तरह घर कर गई है कि इनकी जीवन सम्बन्धी धारणा निम्न स्तर की होकर रह गई है।ये हँसते हैं तो वह हँसीं निम्न स्तर की होती है प्रेम करते हैं तो वह प्रेम निम्न स्तर की होती है।
                   केवल इतना ही कहना है इस निम्न स्तर की वृत्ति से छुटकारा पाने के लिये हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि आज से हम कहीं भी किसी भी रूप में अपने साथ इस शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। इसलिए कोई दूसरा नाम बदल कर कुछ और रखे तो अच्छा होगा।
--------रमेश कुमार सिंह ♌
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बुधवार, 11 मार्च 2015

एक शहर (कविता)

एक शहर ऐसा भी,
जहां न कोई मतलबी,
जहां न कोई दुखदायी,
जहां सभी हैं सुख में गुल,
चारों ओर है शांति शांति,
मारा मारीं का हुआ है अन्त,
नहीं जहां कोई आतंक,
वहाँ जाने को तरसते लोग,
जहां ॠषि लगाते भोग,
धन दौलत से वह सम्पूर्ण,
भ्रष्टाचार का हुआ है अन्त,
इस काव्य को जो भी पढते
मुझसे पुछते उसका नाम
उसका नाम है बेनाम।।।
~~~~~~~~रमेश कुमार सिंह

सुबह सुबह

अरूणोदय के समय में,
सुनहरे तीर  बरसाते।
किरण  में अन्तर्निहित हुए,
विखरने लगा धरातल पें।
जाग गई सभी वनस्पतिया ,
जाग गई सब मानवता।
चहचहाने लगी सब चिड़ियाँ।
लिए भाव कोमल विखेरता।
---------रमेश कुमार सिंह

सोमवार, 9 मार्च 2015

"लोभ"(कहानी)

एक बार की बात है कि मैं बनारस जा रहा था। कर्मनाशा स्टेशन से देहरादून एक्सप्रेस पकड़कर मुगल सराय  पहुँचते हैं। वहाँ पर गाड़िया कुछ ज्यादा ही समय रूककर अपनी थकान मिटाती है।मैं गाड़ी से उतरकर बाहर प्लेटफार्म पर आराम करने लगा सुबह सबको प्यारी लगती है चाहे कोइ भी प्राणी हो कहावत भी है सुबह अच्छा नही तो पूरा दिन अच्छा नहीं।
              मैं बाहर आराम से बैठा हुआ था गाड़ी के चलने का इन्तजार था।तभी अचानक मेरी नजर एक कर्तव्यनिष्ठ इन्सान की तरफ गई उसके अन्दर शराफत तथा इमान्दारी झलक रही थी।कहीं से आकर हमारे बगल में बैठा हुआ था।उम्र लगभग ४८-५० रही होगी।वह गरीब था अपनी गरीबी विताने  के लिये कोई छोटा सा धन्धा किया हुआ था। फेरी लगाकर कंगन बेचा करता था।इसी धन्धा के बलपर अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण करता था ऐसा मालूम होता था उस समय, उसे पता नहीं था कि आज का दिन कष्टदायी होगा।
               तभी उधर अपनी डियूटी का दिखावा करते हुए एक जी०आर०पी० का सिपाही आ रहा था रैंक हवलदार था।कानून के रास्ते पर चलने वाला धिरे-धिरे उस व्यक्ति के तरफ बढ़ा आ रहा था।उस गरीब आदमी के पास आ पहुँचा।
"इस झोला में क्या रखा है"-हवलदार बोला।
"कुछ नहीं हुजूर अपना सामान है"-आदमी बोला।
"कैसा सामान  है "-हवलदार बोला।
"छोटा मोटा धन्धा है चूड़ी कंगन बेचने का फेरी लगाते हैं गाँवों में।"-आदमी इमान्दारी दिखाते हुए बोल दिया।
"नहीं तुम झुठ बोल रहे हो दिखाओ।"-हवलदार बोला।
               गरीब आदमी अपना झोला खोलकर दिखाने लगा।हवलदार जब उस आदमी का झोला का सामान देखा तो इसके अन्दर लालच जाग उठा ।वह आदमी समझ गया अब मूझे इससे कोई नहीं बचा सकता।जो गरीबों को जीते जागते नोचते हैं ।मैं उस घटना को अपनी आँखों से देख रहा था चुप-चुाप मैं बोल नहीं पा रहा था इसलिए कि मुझे भी उस सिपाही के व्यवहार से डर लग रहा था ।
"ये कंगन कितने में बेचते हो"-हवलदार बोला।
"बहुत ज्यादा नहीं हुजूर चालिस रुपये जोड़ा बेचता हूँ।"-आदमी बोला शालीनता से।
"चलो दो जोड़ी कंगन मुझे दो"-हवलदार बोला।
"लिजीए हुजूर।"आदमी दे दिया सोचा कि पैसे से मांग रहे है।
"पैसा दिजीए हुजूर।"-आदमी आशा लगाकर बोला।
"ऐ चुप पैसा कैसा"-हवलदार रौब से कहा।
                 उस कंगन के लिये मानो गरीब आदमी का कलेजा ही निकला जा रहा था।पैसा माँग रहा गिड़गिड़ा रहा था।अपनी गरीबी का तकाजा देकर पैर छान लिया।लेकिन दुष्ट हवलदार के उपर कोई दया नहीं आईं।कोई फर्क नहीं पड़ा जब गरीब आदमी अपना कंगन लेने लगा तब उस हवलदार के आँखों पर लोभ रूपी पट्टी बध जाती है और कानून और अपनी वर्दी उसको दिखाई नहीं दिया और अपना असली रूप दिखा ही दिया।
                हवलदार उस आदमी को एक हाथ उसके चेहरे पर जड़ दिया।वह मूह के बल प्लेटफार्म पर गीर गया।रूदन करने लगा और उस रूदन भरी आवाज़ में ही अपने कंगन के लिए याचनाएँ, वह हवलदार  इतना होने के बाद भी अपने आप को गौरवान्वित हो रहा था कि  मैं बहुत अच्छा कार्य किया। लेकिन उसकी अच्छाई में निचता का भाव दिखाई दे रहा था।कैसी है ये दुनिया,इस दुनिया में कैसे हैं इन्सान और इन इन्सानो में से इन्सानियत की रक्षा के लिए रखे गये हैं। इस तरीके की हैवानियत पर उतर आते है जिसकी कोई सीमा नही है।आज इतना लोभ बढ गया है कि इसके चलते मानव अपनी मानवता सहित अधिकार को भी खो बैठा है।
              तभी संकेत हरा मिला सीटी बजी ,गाड़ी पर चढ़ा और बनारस के लिए चल दिये यही सोचते हुए मनुष्य का लोभ मनुष्य को ही खा रहा है।
---------------------------रमेश कुमार सिंह ♌